आज वो जिन्दगी की जंग हार गयी आखिर खुदा ने उसे बुला हीं लिया , ताउम्र उसने अपने परिवार को कुछ इस तरह संभाला की गांव में लोग उसकी मिशाल दिया करते है , उसे किताबी भाषा का तनिक भी ज्ञान नहीं था , पर जब भी लालटेन लेकर शाम को पढने बैठता था वो मेरे बगल में बैठती थी .उसे ये बिलकुल पता नहीं होता था की मै क्या पढ़ रहा हु फिर भी वो बीच -बीच में बोलती थी ये तो कल भी पढ़ा था रोज़ एक हीं पन्ना पढता है और मै डरके फिर दूसरा पन्ना जोर - जोर से पढने लगता था आज मै सोचता हूँ की वो न पढ़े हुए भी कितनी बुद्धिमान थी मेरे पढ़े हुए शब्द में कुछ -कुछ उसे भी याद हो गया था और जब वो सब्द मै एक दिन बाद दुहराता तो फटाक से मुझे रोक देती और मै ठिठक सा जाता था ,वो मेरी अनपढ़ लेकिन मेरे सरकारी स्कूल के बुद्धिमान गुरुजन से अधिक काबिल थी क्यों की मुझे याद नहीं है की कभी भी उन सभी गुरुजनों ने मुझे रोका हो और ये कहा हो की आज भी तुम वही पढ़ रहे हो जो कल पढ़ रहे थे , उसके प्यार की डोर इतनी मजबूत थी की एक 4-5 साल का बच्चा अपने मम्मी -पापा के पास नहीं रहता था , अगर कभी जोर जबरदस्ती से अलग भी होना परता तो मानो ऐसा लगता जैसे कोई उस बच्चे से उसका कोई अनमोल खिलौना छीन रहा हो और वो बेबस सिवाय आंसू बहाने के कुछ भी नहीं कर पा रहा .मै जब भी उसके यहाँ से अपने घर को ले जाया जाता ,वो मुझे जाते समय कुछ चीजें जरुर देती -दूध का पेड़ा अनरसा और कुछ पैसे , अनरसा हमारे मिथिलांचल का बहुत हीं मशहूर पकवान है . दूध , चीनी , सोडा और चावल को महीन पीसकर बनाया जाता है , बहुत हीं खुशबूदार और लज़ीज़ होता है अनरसा । यूँ तो हमारे जानकर मे कई महिलाएं अनरसा बनाती है पर उसके हाथ के बनाये हुए अनरसा का कोई जोर नहीं था , मै जब भी अपने घर (जबरदस्ती ) लाया जाता मेरे घर के सभी लोग मेरे झोले मे अनरसा ढूढने लगते । और मिलने के बाद चंद- मिनटों मे ख़त्म जाता था । वो झोला भी वही बनाई थी चंद कपरों को सिल कर । अफसोश सिर्फ इस बात का है की काश मै अपने गांव के अगल - बगल काम करता होता ताकि उसके अंतिम सफ़र को जी भर देख लिया होता । वो आज चली गयी मुझसे बहुत दूर , भगवान् उसके आत्मा को शांति दे । इस जनम मे तो वो मेरी माँ की माँ थी अगले जनम मे भी भगवन से यही मांगूंगा की वो हीं मेरी नानी बने ........... नानी को नाती का आखरी प्रणाम
3 टिप्पणियां:
श्रध्धांजलि ...............ईश्वर से प्रार्थना है उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे .........और आपके परिवार को दुख सहने की शक्ति !!!
meri sadbhaavnaayein aapke sath hain
शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
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