25 मई 2010

रसूख वाले कानून को बपौती समझते हैं ....

रुचिका को आखिर २० साल बाद न्याय मिला ,राठौर को कम ही सही लेकिन सजा तो मिली , लेकिन एक चीज़ जो
ऐसे मामले को देकते हुए सामने आते है वो ये की , रसूख वाले मुजरिम क़ानूनी रफ़्तार को अपने हिसाब से गति देने में पूरी तरह सफल रहते है , लोगो को मीडिया का धन्यवाद् करना होगा चुकी बगैर मीडिया के दखलंदाजी के कम से ये मामला तो इतना तूल नहीं पकरता अगर मीडिया का दखलंदाजी नहीं होता तो ये मामला श्याद राठौर के जीवन के अंत काल में सुरु होता या श्याद तब भी नहीं होता ,
ऐसे सभी मामले को देखते हुए यही कहा जा सकता है की हमारे क़ानूनी प्रक्रिया में कही - न कही बहुत बड़ी खामिया है जिसे जितना जल्दी दुरुस्त कर लिया जाय आम जन के हित में होगा । और ऐसे लोगो को सबक भी मिलेगा जो अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल कर ये सोचते हैं की कानून उनकी बपौती है ।

2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

इसका नाम गिनीज बुक में सबसे बेशर्म अपराधी DGP के रूप में दर्ज होना चाहिए /

कडुवासच ने कहा…

...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!