१.कसम खुदा की शायरी का मिजाज़ हीं कुछ और होता
यक़ीनन शायरों की तादाद भी कुछ और होता ,
हर हुस्न दीदार करती शायरों की शायरी से
काश के कमबख्त ये आइना ना होता ।
२.कौन कमबख्त हदे आशिकी को बर्दाश्त कर पाया है
किसी ने शराब को तो किसी ने मौत को गले लगाया है ।
३.हो वक़्त बुरा तो हर पल इम्तेहान होता है
दुश्मन को छोड़ो दोस्त भी दगा दे जाता है ।
आज सुबह ही हमने ये शब्द गढ़े हैं आशा है आप
सबको पसंद आएगा । धन्यवाद् ।
1 टिप्पणी:
बढ़िया है.
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