7 अप्रैल 2010

मनीष की कलम से आपके खिदमत मे ....

१.वक़्त की बेवफाई देखो कितने सितम ढाए हैं
कभी नफरत थी जिस गली से हमे आज वहीँ
घर बनाये हैं हमने ।
२.हमे सराबी कह कर क्या खूब इलज़ाम लगाया
है तुमने , जरा पैमाने से पूछो हमे ऐसा बनाया है
किसने ।
३.हर मर्ज़ की दवा होती तो दुआओं पे यकीन
कौन करता , सबूतों के बिना गवाहों पे यकीन
कौन करता,
शुकर है शाहजहाँ ने ताजमहल बना
दिया वरना उनके मोहब्बत पे यकीन कौन करता।
४.दूरियाँ चाहे कितनी भी हो ,
दर्द चाहे जितनी भी हो
तेरा दमन हमना छोरेगें
तुफा चाहे कितनी भी हो ।

4 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, पसंद आई।

Manish Jha ने कहा…

आपके शब्द मे मै अपनी प्रसंसा
देख बहुत खुस हुआ ....

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।