5 अप्रैल 2010

मनीष क़ी कलम से आपके खिदमत मे ....

.है तकलीफ कि वो खुद हीं बँट चूका है
चंद नमो मे कहीं अल्लाह तो कहीं इश्वर
के चाहने वालो मे
वो कहता है हम तो एक है एक हीं
धरती बनाई तुम हीं तो जिसने लकीर
खिंच इसपर सरहदें बनाई
.हमे खुद पे नहीं खुदा पे तरस आता है
हसीनो को जमी पे भेज नजाने कैसे आसमा
पे रहता है
.सफ़र ख़त्म होगा मनु कफ़न मे लिपट जाओगे
कुछ छोड़ जाओ ऐसा के किसको मुद्दतो बाद याद
आओगे

2 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

बहुत अच्छी बात लिखी है.

Shekhar Kumawat ने कहा…

.सफ़र ख़त्म होगा मनु कफ़न मे लिपट जाओगे
कुछ छोड़ जाओ ऐसा के किसको मुद्दतो बाद याद
आओगे ।


SAHI HE



BAHUT KHUB

shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/