26 जन॰ 2009

जिन्दगी के सफर का सच .......

इक राह जिन्दगी होती है , हम राही बनकर चलते हैं॥ ........ कब सोते हैं कब जगते है इस बात से फर्क नहीं परता , हर वक़्त मुसाफिर रहते हैं .......हम युही पार नही करते कभी बीच राह भटकते है , कभी ठोकर खाकर गिरते है ,फिर उठते हैं ,संभलते है ,एक लम्बी आहे भरते है .........फीर उसी रह पर चलते है छांव -धुप से फर्क नहीं परता हम सपने दिल में रखते हैं ,हर मुस्किल से हम लरते है ,सपने अपने सच करते हैं....बस उसी राह पर चलते हैं. ,.............. .. एक राज की बात ऐसा है ,सच कोई ऊपर बैठा है ,सब खेल उसी का होता है ,हर रह वही बनाता हैं ,जब बेचैन मुसाफिर हो जाता वो चैन से उसे सुलता है .....फीर राह वहीँ पर रुक जाती जो रह जिन्दगी होती है ................एक राह जिन्दगी होती है ,एक रह जिन्दगी ......................

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