26 दिस॰ 2009

नेताजी भूल भी नहीं भूल हीं जाते हैं

जरा सोचिये वो मंजर कैसा होगा जब कोई आपको मारने
के लिए बन्दुक ताने आपके सामने खड़ा होगा (कुछ भी
बताना मुस्किल है )फिर उसके बन्दुक से दना-दन
गोलीयां निकलती है और आपका बाल भी बांका नहीं
होता है ,इसका मतलब ये नहीं की उसका निशाना चुक
गया नहीं बिलकुल नहीं वो तो बहुत ही माहिर है इस
गोला -बारूद को इस्तेमाल करने मे आखिर बचपन
से उसे यही तालीम तो मिली - जेहाद करो जन्नत
नसीब होगा , और उनके जेहाद की समझ सिर्फ जान
लेने से हींतो है , तो फिर आप कैसे जीवित बच गए
- आप इसलिए बच गए क्योंकि आपकी गोली किसी
वीर बेटे ने अपने सिने से लगा लिया , आपकी जान
की कीमत वो अपने मौत से चुकाया है ,ऐसे महान
आत्मा को भला आप कैसे भूल सकते आप तो उस
वीर -योद्धा के क़र्ज़ तले दबा है जिसे चूका पाना इस
जन्म मे तो आपके लिए नामुमकिन है । आप भला
ये क़र्ज़ कैसे भूल सकते ,
मगर भूल गए जी हा भूल गए
जरा याद कीजिये १३ दिसम्बर २००१ को जब भारत
की आत्मा संसद पर हमला हुआ था और भारतीय
सपूत ने अपनी जान की क़ुरबानी देकर इस आत्मा
की शारीर (हमारे नेता ) पर एक खरोंच तक नहीं
आने दिया , अगर नहीं तो क्या वजह है की हमारे
शहीदों के परिवारवाले संसद मे नहीं जाने की कसम
खा लिया । वजह एक नहीं कई है ,ना दोषियों को सजा
मिल रहा है और ना ही शहीदों के परिवारवालों से किया
गया वादा निभाया जा रहा है ,
बस एक ही काम किया जा रहा है
चेहरे पे शिकन और कुछ मोमबत्ती और मालाएं लेकर
सहिदों के स्मारक पर साल के एक दिन पहुंचा जा
रहा चाहे वो कारगिल दिवस हो या फिर १३ दिसम्बर ।